ये क्या हो रहा है

 

ये क्या हो रहा है?


बेटा बाप से इंटेलिजेंट हो रहा है। 


अमीरों का काम अर्जेंट हो रहा है,


गरीब बेचारा साइलेंट हो रहा है। 


रिश्वत से काम हैंड टु हैंड हो रहा है,


ईमानदार बेचारा सस्पेंड हो रहा है। 


प्रदूषण आज 100 % हो रहा है, 


चोरी डकैती परमानेंट हो रहा है।


***** ***** ***** ***** ***** *****


     


  ये क्या हो रहा है?


यह कविता वर्तमान समय में भारत की सामाजिक और राजनीतिक स्थिति को दर्शाती है। कविता में कहा गया है कि बेटा बाप से अधिक बुद्धिमान हो रहा है, लेकिन यह बुद्धिमानी उसे भ्रष्टाचार और अन्य सामाजिक बुराइयों से नहीं बचा पा रही है। अमीरों का काम हमेशा जल्दी से जल्दी हो जाता है, जबकि गरीबों को हमेशा इंतजार करना पड़ रहां है। ईमानदार लोग हमेशा परेशान होते हैं और उन्हें अक्सर सस्पेंड कर दिया जाता है। प्रदूषण और चोरी-डकैती लगातार बढ़ रही है।


कविता में व्यक्त की गई चिंताएं 


शिक्षा के प्रसार के बावजूद, समाज में भ्रष्टाचार और अन्य सामाजिक बुराइयां बढ़ रही हैं।


आर्थिक असमानता बढ़ रही है और गरीबों को न्याय नहीं मिल रहा है।


ईमानदारी का सम्मान नहीं किया जा रहा है और ईमानदार लोगों को परेशान किया जा रहा है।


पर्यावरण प्रदूषण एक गंभीर समस्या बन गया है।


अपराध बढ़ रहा है और लोगों को सुरक्षा का एहसास नहीं हो रहा है।


कविता हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि हम अपने समाज को बेहतर बनाने के लिए क्या कर सकते हैं। हमें शिक्षा, आर्थिक विकास, सामाजिक न्याय और पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करना चाहिए। हमें भ्रष्टाचार और अपराध को रोकने के लिए भी कड़े कदम उठाने चाहिए।


यहां कविता के कुछ संभावित समाधान दिए गए हैं


शिक्षा के माध्यम से लोगों को भ्रष्टाचार और अन्य सामाजिक बुराइयों के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए।


आर्थिक विकास के लिए समान अवसर प्रदान किए जाने चाहिए ताकि गरीबी कम हो सके।


ईमानदारी को बढ़ावा देने के लिए कड़े कानून बनाए जाने चाहिए।


पर्यावरण संरक्षण के लिए लोगों को जागरूक किया जाना चाहिए।


अपराधियों को कड़ी सजा दी जानी चाहिए।


यदि हम सभी मिलकर इन समस्याओं का समाधान करने के लिए काम करें, तो हम अपने समाज को बेहतर बना सकते हैं।


        लेख -: महेश प्रसाद उर्फ महतो जी


सफलता की कुंजी एक ऐसी अवधारणा है जिस पर सदियों से बहस होती रही है। कुछ लोग मानते हैं कि सफलता केवल भाग्य या किस्मत से मिलती है, जबकि अन्य मानते हैं कि यह कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प का परिणाम है। तो आईए आज हम चर्चा करते हैं सफल होने के प्रयासों पर।


जैसा कि आप जानते हैं आज हमारा समाज अभिलाषाओं में जीता है आशाओं में जीता है और कुछ कर गुजरने की इच्छा रखता है। यह सारी काबिलियत यह सारा गुण एक इंसान को समाज में इज्जत प्रतिष्ठा और सम्मान दिलाता है



।जो की बहुत ही अच्छी बात है।

लेकिन क्या आप जानते हैं? अभिलाषाओं को पूरा करने के लिए कर्म लगता है, जिसे हम मेहनत कहते है, कर्म एक ऐसा मंत्र है जो अभिलाषाओं को पूरा कर आशा के आसपास रहता है।

जितना अच्छा हमारा कर्म होगा, जितनी अच्छी हमारी मेहनत होगी,उतना ही अच्छा उसका परिणाम होगा। अभिलाषा हमें प्रेरित करती है कर्म करने के लिए और कर्म करने पर हमें सफलता मिलती है।

आज हमारे देश में हमारे समाज में ऐसे कई लोग मिल जाएंगे जो बड़ी-बड़ी अभिलाष तो रखते हैं पर अभिलाषाओं को पूरा करने के लिए कर्म नहीं करते मेहनत नहीं करते हैं।

उनका कर्म योग सुन्य रहता हैं, और उनका अभिलाषा बहुत रहती है।

ऐसे में अभिलाषा उसके आसपास आएगी भी तो कैसे यह सोचने का विषय है।

अभिलाषा आएगी नहीं तो कर्म नहीं कर पाएगा, मेहनत नहीं कर पाएगा तो उसे सफलता नहीं मिलेगी।

ऐसे कई लोग हैं, जो बहुत कम समय में बहुत कुछ पा लेना चाहते हैं । बिना मेहनत किए हर खुशी और हर मंजिल हथिया लेना चाहते हैं।

पर यह संभव नहीं है, क्योंकि जब तक हमारा कर्म अच्छा नहीं होगा तब तक उसका परिणाम भी अच्छे नहीं होंगे।

उदाहरण के लिए अगर हम बबुल का पेड़ लगाएंगे तो बबुल ही होगा, आम का नहीं होगा।

अगर हम जीवन में कामयाब होना चाहते हैं मंजिल पाना चाहते हैं और कुछ कर गुजरने की इच्छा रखते हैं तो उसके हिसाब का कर्म अर्थात मेहनत करनी होगी तभी हम कामयाब हो पाएंगे,और उस मंजिल तक पहुंच पाएंगे जहां हम पहुंचना चाहते है।

।।धन्यवाद।।


जब पैसा बोलता है'

    (कविता)

जब पैसा बोलता है,

तब कोई नहीं मुंह खोलता है।

सब उसकी हां में हां मिलते हैं

और सब उसके आगे पीछे डोलता है।

जब पैसा बोलता है।


पैसों की होती वाहवाही,

पैसों से सब होता है काम।

पैसा है एक ऐसी सक्ति,

आज पैसा ही है बना भगवान।

अब पाप का खौफ नहीं किसी को

अपनी शक्ति को पैसों से तोलता है

जब पैसा बोलता है,



कर रहे हैं भाग दौड़ सब ,

हो रहा पैसों का खेल।

दुश्मन को भी दोस्त बना दे,

पैसा करादे सबको मेल।

पैसा है तो कड़वाहट भी,

शहद बनाकर घोलता है।

जब पैसा बोलता है।

       महेश प्रसाद

**********-**********-**********-**********

   जब पैसा बोलता है

यह कविता पैसे की शक्ति और प्रभाव को दर्शाता है। कवि कहता है कि जब पैसा बोलता है, तो कोई भी उसकी बात नहीं टाल सकता। सब उसकी हां में हां मिलाते हैं और उसके आगे पीछे डोलता हैं। पैसों की होती है वाहवाही, पैसों से सब होता है काम। पैसा एक ऐसी शक्ति है, जो आज पैसा ही है बना भगवान।

अब पाप का खौफ नहीं किसी को, अपनी शक्ति को पैसों से तोलता है।

कवि कहता है कि लोग पैसों के लिए भाग दौड़ कर रहे हैं। पैसों का खेल हो रहा है। पैसा दुश्मन को भी दोस्त बना दे सकता है और सबको मेल करा सकता है। पैसा है तो कड़वाहट भी, शहद बनाकर घोल देता है।

कवि की यह कविता एक सचाई को बयां करती है कि पैसा हमारे जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पैसा हमारे जीवन में सुख, सुविधा और शक्ति प्रदान कर सकता है। लेकिन पैसा ही सब कुछ नहीं है। पैसे के साथ-साथ हमें ईमानदारी, कर्तव्य और सच्चाई जैसे गुणों को भी अपनाना चाहिए।

कविता की विशेषताएं

कविता में पैसे की शक्ति और प्रभाव को सरल और प्रभावी भाषा में व्यक्त किया गया है।

कविता में पैसे के दो पहलू दर्शाए गए हैं। एक पहलू में पैसे की सकारात्मक शक्तियों को दिखाया गया है, जबकि दूसरे पहलू में पैसे की नकारात्मक शक्तियों को दिखाया गया है।

कविता में पैसे के बारे में एक सचाई को बयां किया गया है कि पैसा हमारे जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

            लेख -: महेश प्रसाद/उर्फ महतो जी




'मम्मी की डाट'

(बाल कविता)

ना पढ़ते थे ना लिखते थे,

बस हम खेला करते थे।

मम्मी मुझे जब डांट लगाती,

पापा से कह देते थे।

पापा भी मुझको समझते,

करो पढ़ाई मन से बेटे‌।

पढ़ोगे तो बनोगे अफ्सर,

फिर कहलाओगे तुम सर।

मम्मी की एक डाट से देखो,

जिंदगी बदल जाती है।

मम्मी की याद हमेशा,

हम सब बच्चों को आती है

*** महेश प्रसाद***

'मम्मी की डाट'

यह एक भावुक कविता है जो बचपन की यादों को बयां करती है। कविता में बताया गया है कि बचपन में बच्चे पढ़ाई-लिखाई की बजाय खेलना-कूदना पसंद करते थे। जब उनकी मां उन्हें डांटती थीं, तो वे अपने पिता से शिकायत करते थे। पिता भी उन्हें पढ़ाई करने के लिए समझाते थे। कविता में यह भी कहा गया है कि मां की एक डांट से जिंदगी बदल सकती है। मां की याद हमेशा बच्चों को आती है।

कविता की भाषा सरल और सहज है। कविता में भावों को बहुत ही खूबसूरती से व्यक्त किया गया है। कविता में बचपन की यादों को ताजा किया गया है। कविता सभी बच्चों और उनके माता-पिता को पसंद आएगी।

कविता का भावार्थ 

बचपन में बच्चे पढ़ाई-लिखाई की बजाय खेलना-कूदना पसंद करते हैं।

मां की डांट बच्चों को पढ़ाई करने के लिए प्रेरित करती है।

मां की एक डांट से जिंदगी बदल सकती है।

मां की याद हमेशा बच्चों को आती है।


कविता के कुछ महत्वपूर्ण पंक्तियां निम्नलिखित हैं ।

"ना पढ़ते थे ना लिखते थे, बस हम खेला करते थे।"

"मम्मी की याद हमेशा, हम सब बच्चों को आती है।"

कविता का शीर्षक "मां की डांट" है। शीर्षक कविता के मुख्य विषय को स्पष्ट रूप से व्यक्त करता है।

     लेख :- महेश प्रसाद/उर्फ महतो जी 

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

GOOGLE ADSENSE SE PAISA KAISE KAMAYE

Online Earning: घर बैठे बिना इन्वेस्टमेंट के कमाएं लाखों रुपये, ऐसे करें काम की शुरुआत

वेबसाइट बनाने का तरीका | How To Start Your Own Website In Hindi

GOOGLE ADSENSE SE PAISA KAISE